रस किसे कहते है , रस के भेद ( Ras in Hindi) :: नमस्कार साथियों कैसे हैं आप आशा हैं कि आप सभी लोग अच्छे होंगे। और हमारे द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी से बहुत ही प्रभावित हुए होंगे। हिंदी की शृंखला में हमने आपको अभी तक स्वर , व्यंजन , अयोगवाह ,और अलंकार , समास आदि की जानकारी प्रदान की हैं। आज हिन्दीवानी आपको रस के बारे में पूरी जानकारी( Ras in Hindi ) प्रदान करेगी। जिसके अंतर्गत आपको सभी रसो की सम्पूर्ण जनाकारी और उसके उदाहरण के बारे में जानकारी प्रदान की जॉयेगी।
इस आर्टिकल के अंतर्गत आपको रस किसे कहते है , रस के भेद , करूण रस किसे कहते है , शांत रस किसे कहते है , रौन्द्र रस किसे कहते हैं , वीर रस किसे कहते है , हास्य रस किसे कहते है , भयानक रस किसे कहते है , वीभत्स रस किसे कहते है , अद्भुत रस किसे कहते है , वात्सल्य रस किसे कहते है , आदि की जानकारी प्रदान की जॉयेगी। साथ ही साथ इसके आपको बहुत सारे उदाहरण देकर समझाने की कोशिश की गई हैं। तो आइए शुरू करते है। और पढ़ते हैं। Ras in Hindi
रस किसे कहते है ? रस की परिभाषा( Ras in Hindi) –

रस का शाब्दिक अर्थ होता है।आनंद इस प्रकार से काव्य को पढ़ने या सुनने में जिसका आनंद की अनुभूति होती है। उसी हम रस के नाम से जानते हैं।पढ़ने वाले सुनने वाले में स्थिति स्थाई भाव ही विभावादी से संयुक्त होकर रस रूप में परिणित तो हो जाता है।
रसों को काव्य की आत्मा / प्राणत्व भी माना जाता हैं। रास के चार अवयव माने जाते है। और यह अवयव निम्नलिखित हैं।
- स्थायी भाव।
- विभाव।
- अनुभाव।
- संचारी भाव।
विभाव किसे कहते है ?
स्थायी भावों के उधबोधक कारण को हम विभाव कहते है। भावों की उतपत्ति के कारण विभाव माने गए है।विभाव के दो प्रकार होते है।
- आलम्बन विभाव।
- उद्दीपक विभाव।
आलम्बन विभाव किसे कहते है ?
जिसके माध्यम से स्थाई भाव जगते हैं उन्हें आलंबन विभाव कहा जाता है उदाहरण के लिए जैसे नायक नायक का आलंबन विभाव के दो पक्ष माने जाते हैं यह पक्ष के कारण ही आलम्बन विभाव को भी दो भागों में बांटा गया हैं। जो निम्नलिखित हैं।
आश्रयालम्बन विभाव – आज तरह के मन में भाव जाते हैं तो वह आश्रयालम्बन कहलाता है जैसे राम के मन में सीता के प्रति रत्ती का भाव जगता है तो राम आश्रय होते हैं।
विष्यालम्बन – जिसके प्रति या जिसके कारण मन में भाव जगते हैं वह विष्यालम्बन कहलाता है।जैसे – राम के मन में सीता के प्रति रति भाव जाते हैं तो सीता विषय हैं।
अनुभाव किसे कहते है ?
आंतरिक मनोभावों के जो शारीरिक व्यंजन होते हैं उनको अनुभव कहते हैं।अर्थात आलंबन और उद्दीपन विभाव ओं के कारण उत्पन्न भावों को बाहर प्रकाशित करने वाले कार्य को हम अनुभव के नाम से जानते हैं।उदाहरण के लिए जैसे-
- गुस्से से मुंह लाल हो जाना
- होंठ फड़फड़ाना।
- दिल धड़कना।
- प्रेम में पसीना आना।
- घृणा में नाक सिकोड़ना
अनुभाव के प्रकार – अनुभाव के भी दो प्रकार माने जाते है। जो निम्नलिखित हैं।
सात्विक अनुभाव – जो विचार या चेस्ट आएं शरीर की स्वाभाविक क्रिया के रूप में होती है यह सात्विक अनुभाव के अंतर्गत आती हैं।
सात्विक अनुभाव के 8 प्रकार बताए गए है।
स्तम्भ – स्तंभ के अंतर्गत प्रसन्नता लज्जा अधिकारियों से शरीर की कथित का रुक जाना होता है।
कम्प – कंप के अंतर्गत काम भय आदि कारणों से शरीर का कांप जाना आदि लक्षण दिखते हैं।
स्वर – भंग – इसके अंतर्गत शोक भय मदारी कारणों से मुख की स्वाभाविक गति में से वचनों का ना निकालना आदि लक्षण पाए जाते हैं।
वैवर्ण – इसके अंतर्गत भय , शोक , काम आदि कारणों से शरीर का रंग उड़ जाना जैसे शरीर का पीला पड़ जाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
अश्रु – इसके अंतर्गत आनंदातिरेक , शोकदी कारणों से आंखों में पानी भर आना आदि लक्षण प्रकट होते है।
प्रलय – प्रलय के अंतर्गत भाई अथवा शोक के कारण इंद्रियों का चेतना शून्य हो जाता है।
स्वेद – स्वेद के अंतर्गत भय , लज्जा, प्रेम आदि के कारण शरीर पर पसीना आज आने के लक्षण प्रकट होते हैं
संचारी भाव किसे कहते है ?
जो भाव स्थाई भाव के सहायक रूप में आकर उनमे मिल जाए वह संचारी भाव कहे जाते हैं। जो अनुकूल परिस्थितियों में घर घटते बढ़ते रहते हैं।भरत मुनि ने इस के संदर्भ में यह कहा है कि आप पानी में उठने वाले बुलबुले के जैसे हैं जैसे वह अपने आप उठते हैं और अपने आप ही विलीन हो जाते हैं।
संचारी भाव को 33 भाग बताए गए है। जो अग्रलिखित हैं।
हर्ष | अवहितथा |
त्रास | अपस्मार |
ग्लानि | मरण |
शंका | विषाद |
असूया | लज्जा |
अमर्ष | चिंता |
मोह | गर्व |
उत्सुकता | उग्रता |
चपलता | दीनता |
जड़ता | आवेग |
निर्वेद | बिबोध |
धृति | श्रम |
मति | निंद्रा |
वितर्क | स्मृति |
आलस्य | उन्माद |
स्वप्न | व्यादि |
मद |
स्थायी भाव किसे कहते है ?
रस की उत्पत्ति मन की भिन्न-भिन्न प्रवृत्तियों के अनुसार होती है। विभिन्न प्रकार की आवृत्ति ओं से विविध रसों की उत्पत्ति होती है इन प्रवृत्तियों को हम स्थाई भाव के नाम से जानते हैं भाव का जहां स्थायित्व हो उसे स्थाई भाव कहते हैं। जो भाव चिरकाल तक चित्र में ही स्थिर रहता है जिसे विरुद्ध या अविरुद्ध दबा नहीं सकते। जो विभावदी से संबंध होने पर रस रूप में व्यक्त होता है।उस आनंद के मूलभूत भाव को स्थाई भाव कहते हैं।
स्थायी भाव के प्रकार – स्थायी भाव के निम्नलिखित प्रकार माने गए है।
- रति।
- हास।
- शोक।
- रौन्द्र।
- उत्साह।
- भय।
- जुगुप्सा।
- विस्मय।
रस के प्रकार –
भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में 8 रसो का वर्णन किया है। परन्तु वही ही अभिनव गुप्त जी ने 9 रसो का वर्णन किया है। इस प्रकार से हम रसों की संख्या को 9 मानते है। परन्तु कहि कहि पर 10 रस का भी वर्णन हैं। तो हम 10 रसो के बारे में पढेंगे।तो आइए विस्तार से अब सभी रसों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
- श्रृंगार रस
- करुण रस।
- शांत रस।
- रौन्द्र रस।
- वीर रस।
- हास्य रस।
- भयानक रस।
- विभत्स रस।
- अद्भुत रस।
- वात्सल्य रस।
श्रृंगार रस किसे कहते है ? ( Shringar Ras in Hindi)
रति नामक स्थाई भाव श्रंगार रस में पाया जाता है इसमें नायक और नायिका के मिलने के प्रसंग में संयोग श्रृंगार तथा उनके बिछड़ने में वियोग श्रृंगार होता है।
श्रृंगार रस के उदाहरण – श्रृंगार रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) कहुँ बाग तड़ाग तरंगिनि तीर तमाल की छाँह विलोकि भली।
घटिका इक बैठती हैं सुख पाप बिछाय तहाँ कुस काल थली।।
मग को श्रम श्रीपति पूरी कर सिय को शुभ वाकल अंचल सो।
श्रम तेऊ हरे तिनको कहि केशव अचल चारू दृगचल सो।।
(२) बतरस लालच लाल की ,मुरली धरी लुकाय।
सौंह करे, भौंहनि हैसै , दैन कहै , नटि जाय।।
(३) निसिदिन बरसत नयन हमारे।
सदा रहति पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे।।
(४) तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
झके कूल सो जल परसन हित मनहुँ सुहाये।।
करुण रस किसे कहते है ? ( Karun ras )
किसी प्रिय व्यक्ति के चीर बिरह अथवा मरण से उत्पन्न होने वाला शो कहा विभाग के परिपाक को करुण कहते हैं।
करुण रस के उदाहरण – करुण रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) हाय राम कैसे झीले हम अपनी लज्जा अपना सो गया।
हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्रपिता परलोक।।
(२) धोखा ना दो भैया मुझे इस भांति आकर यहां।
मझधार में मुझको बहाकर तात जाते हो कहां ?
सीता गई तुम भी चले मैं भी ना जिऊंगा यहां।
सुग्रीव बोले साथ में सब जाएंगे वानर वहां।।
(३) राधौ गीध गोद करि लीन्हो।
नयन सरोज सनेह सलिल।।
सूचि मनहुँ अरध जल दीन्हो।
(४) अभी तो मुकुट बंधा था माथ
हुए कल की हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल।
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल
हाय रुक गया यही संसार,
बिना सिंदूर अनल अंगार।
वातहत लतिका वट
सुकुमार पड़ी हैं छिन्न धरा।।
(५) सोक बिकल सब रोवहि रानी
रूपु सीलु बलु तेजू बखानी।
करहि विलाप अनेक प्रकारा।
पारिहि भूमि तल बारहि बारा।
शांत रस किसे कहते है ? ( Shant Ras in Hindi)
अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है।और विषयों से बैराग्य हो जाता है।यही अभिव्यक्त होकर शांत रस में परिणत हो जाता है। दूसरे शब्दों में निर्वेद परिपक्वता अवस्था को शांत रस कहते हैं।
शांत रस के उदाहरण –
शांत रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) मन रे कागद का पुतला।
लागै बूंद बिनसि जाए छीन में,गरब करै क्या इतना।।
(२) हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा।
हाय ! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण – सुवर्ण खरा।
सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा।
(३) तपस्वी !क्यो इतने हो कल्यानत,
वेदना म यह कैसा वेग ?
आह ! तुम कितने अधिक हताशा
बताओ यह कैसा उद्देग?
रौन्द्र रस किसे कहते है ?(Raundra Ras in Hindi)
किसी व्यक्ति के द्वारा क्रोध में किए गए अपमान आदि के के में किए गए अपमान आदि के के द्वारा उत्पन्न भाव की अवस्था को रौन्द्र रस के रूप में जाना जाता है।
रौन्द्र रस के उदाहरण – रौन्द्र रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ में जलने लगे ।
सब सील अपना भूलकर करतल युगल मृत पड़े।।
संसार देखें अब हमारे सत्य रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ खड़े।।
(२)अतिरस बोले बचन कठोर।
बेगि देखाउ मूढ़ नत आजू।
उलटऊँ महि जहँ लग तवराजु।।
(३) जो राउर अनुशासन पाऊ।
कन्दुक इव ब्राह्मण उठाऊँ।
काचे घट जिमि डारिऊँ फोरी।
सकौं मेरु मूले व तोरी।।
(४) बोरौ , सबै रघुवंश कुठार की
धार में बारन बाजि सररथही।
बान की वायु उड़ाय के लच्छन
लच्छ करौ अरिहा स्मररथही।।
वीर रस किसे कहते है ?
स्थायी नामक जब स्थायी भाव मे बदल जाता हैं। तो उसे हम वीर रस के नाम से जानते है।
वीर रस के उदाहरण – वीर रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) वीर तुम बढ़े चलो ,धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो।
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं।।
(२) मानव समाज में अरुण पड़ा, जल जंतु बीच को वरुण
पड़ा।
इस तरह भभकता राणा था ,मानव सर्पों में गरुण पड़ा।।
(३) साजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धरि।
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।।
(४) हाथ गह्यो प्रभु को कमला कहै नाथ कहा तुमने चित्त
धारि।
तन्दुल खाय मुठी दुइ दीन कियो तुमने दुइ लोक बिहारी।
खाय मुठी तिसरी अब नाथ कहा निज वास की आस
बिसारी।
रंकहि आप समान कियो तुम चाहत आपहि होत
भिखारी।।
(५) तीय सिरोमनि सीय तजि, जेहि पावक की कलुषई दही
हैं।
धर्म धुरंदर बन्धु तज्यो पुर लोगनि की बिधि बोल कहि
हैं।
कीस निसाचर की करनी न सुनी न विलोकती चित्त रही
हैं।
राम सदा ससागत की अनंखोहि कनीसि सुभय सही
हैं।।
हास्य रस किसे कहते है ?
विकृति ,आकार ,वाणी, वेश, चेष्टा आदि के वर्णन से उत्पन्न रहस्य की परिपक्वता अवस्था को हास्य रस कहते हैं हैं।
हास्य रस के उदाहरण – हास्य रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) विघ्न के वासी उदासी तपोब्रत धारी महा बिनु दुखारे। गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनी में मुनि वृंद सुखारे। हाय हाय शिला सब चंद्र चंद्र मुररी पखि पद मंजुल कुंज कुंज तिहारे।। किन्ही भली रघुनायक जू करून करि कानन कौ पग धारे।।
(२) तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेम प्रताप।
साज मिले 15 मिनट, घंटा भर अलाप।।
घंटा भर अलाप, राग में मारा गोता।
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।।
भयानक रस किसे कहते है ?
किसी भयानक दृश्य को देखने से उत्पन्न भय की परिपक्वता अवस्था को भयानक रस कहा जाता है।
भयानक रस के उदाहरण – भयानक रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल का लेकर लेकर जालो सी।
चली आ रही थी फेन उगलती फन फैलाए व्यालो सी।।
(२) आज बचपन का कोमल गात।
जरा का पीला पात।
चार दिन सुखद चांदनी रात।
और फिर अंधकार अज्ञात।।
विभत्स रस किसे कहते है ?
जुगुप्सा नामक स्थाई भाव विभाव के द्वारा जब परिपक्वता अवस्था उत्पन्न होती है तब वह विभक्त रस कहलाता है।
विभत्स रस के उदाहरण – विभत्स रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) आंखें निकाल उड़ जाते ,क्षण भर कर आ जाते।
शव जीव खींचकर कौवे ,चुभला चभला कर खाते।
भोजन में श्वान लगे मुर्दे थे भू पर लेटे।।
खा मांस चाट लेते थे ,चटनी सम बहते बेटे।
(२) सिर पर बैठ्यो काग आंख दोउ खात निकारत।
खिंचत जिबहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।
गीध जांघि को खोदी खोदी कै मांस उपरत।
स्वान आंगुरिन काटि काटि कै खात विदारत।।
अद्भुत रस किसे कहते है ?
आश्चर्यजनक वर्णन उत्पन्न विस्मय भाव की परिपक्वता अवस्था को अद्भुत रस कहते हैं।
अद्भुत रस के उदाहरण – अद्भुत रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया।
क्षण भर को वह बनी अचेतन हिल ना सकी कोमल काया।।
(२) अखिल भुवन चर अचर सब ।
हरि मुख में लखि आतु ।।
चकित भाई गदगद वचन।
विकसित दृग पुलकातु।।
वात्सल्य रस किसे कहते है ?
छोटे बालकों के बाल सुलभ मानसिक क्रियाकलापों के वर्णन से उत्पन्न वात्सल्य प्रेम की परिपक्वता अवस्था को वात्सल्य रस कहा जाता है। वात्सल्य को हमने दो भागों में विभाजित किया है।इनमें से एक संयोग वात्सल्य रस से होता है एक वियोग वात्सल्य रस होता है।
वात्सल्य रस के उदाहरण – वात्सल्य रस के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
(१) जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलरावै , मल्हावै जोई सोई , कछु गावै।।
(२)किलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मनिमय कनक नन्द के आंगन बिंब पकरिवे धावत।।
(३)वर दन्त की पंगति कुंदकली अधराधर खोलन की।चपला चमके धन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की।।
घुघरारी लटे लटकै मुख ऊपर कुंडल लोल कपालन की।
निवछवर प्राण करे तुलसी बलि जाऊ लला इन बोलन की।।
(४) हौ तो धाय तिहारे सुत की कृपा करत ही रिहयो।।
तुक तौ टेव जानीतिही हैं हौ तउ , मोहि कहि आवै ।
प्राप उठत मेरे लाल लडै तहि माखन रोटी भावै।।
FAQS of Ras in Hindi
प्रश्न – रस के अंग हैं ?
उत्तर – रस के चार अंग होते है।
प्रश्न – उद्दीपक विभाव के कौन से भेद हैं ?
उत्तर – उद्दीपक विभाव के निम्नलिखित भेद हैं।
(१) आलम्बन के गुण
(२) आलम्बन की चेेष्ठाये
(३) आलम्बन का अलंकार
प्रश्न – अनुभाव के भेद हैं ?
उत्तर – अनुभाव के चार भेद होते है।
(१) कायिक
(२) वाचिक
(३) आहार्य
(४) सात्विक
प्रश्न – रस कितने प्रकार के होते है ?
उत्तर – रस नव प्रकार के होते है।
फाइनल वर्ड –
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