पावलव का क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत(Povlov’s theory of classical conditioning in hindi)

पावलव का क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत(Povlov’s theory of classical conditioning in hindi) – अधिगम के विभिन महत्वपूर्ण सिद्धान्त में से एक पावलव का क्लासिकल अनुबन्धन सिद्धान्त भी प्रमुख है। आज hindivaani आपको पावलव के अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएगा।

पावलव का क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत(Povlov’s theory of classical conditioning in hindi)

पावलव का क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत(Povlov's theory of classical conditioning in hindi)

अधिगम के क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत का प्रतिपादन पी पावलव नामक शिक्षण शास्त्री ने किया था।इस सिद्धांत के अन्य नाम या उपनाम अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत या अनुबंधित अनुक्रिया सिद्धांत भी कहा जाता है।

क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत का अर्थ

क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत का अर्थ

UCS – Unconditioned stimulus
CS – Conditined stimulus
UCR – Unconditioned Response
CR – Conditioned response

क्लासिकल अनुबंधन सिद्धांत के अंग

विलोपन (Extinction) -अनुबंधन के बाद जब अनुबंधित उद्दीपक के साथ साथ हम कई बार अगर स्वाभाविक उद्दीपक को नहीं प्रस्तुत कर पाते हैं। तो अनुबंधित अनुक्रिया का धीरे-धीरे दिल विलोपन हो जाता है।

स्वतः प्रकटिकरण ( Spontanecus recovery ) –

विलोपन के बाद अगर हम कुछ समय बाद अनुबंधित उद्दीपक को पुनः प्रस्तुत करते हैं तो कभी-कभी कुत्ता अनुबंधित अनुक्रिया करना पुनः प्रारंभ कर देता हैं।

उद्दीपक सामान्यीकरण ( stimulus generalisation ) –

एक बार अनुबंध स्थापित हो जाने पर प्राणी अनुबंधित उद्दीपक से मिलते जुलते अन्य उद्दीपकों के प्रति प्रायः उसी ढंग से अनुपक्रिया करता है।

उद्दीपक विभेदन ( Stimulus discrimination ) –
अनुबंधन के प्रयासों की संख्या बढ़ाने पर प्राणी मूल अनुबंधित तथा सामान्य उद्दीपकों में धीरे-धीरे विभेद करने लगता है।

कालिक क्रम (Temporal sequence )

अनुबंधन के लिए अनुबंधित उद्दीपक तथा स्वाभाविक उद्दीपक के बीच समय अंतराल के बढ़ाने पर अनुबंधन कमजोर हो जाता है।

पुनर्बलन– अनुबंधन को पुनर्बलन करने के लिए यह महत्वपूर्ण है। कि उद्दीपक के साथ-साथ स्वाभाविक उद्दीपक भी बीच-बीच में दिया जाता रहे।

क्लासिकल अनुबन्धन सिद्धान्त का शिक्षण में उपयोग

  • भाषा का विकास करने में
  • स्वभाव व आदतों के निर्माण में
  • अभिवृति का विकास करने में
  • गणित शिक्षण में सहायक के रूप में
  • समाजीकरण में सहायक

संबंध प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने वाले कारक –

संबंध प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं।

प्रेरकों का प्रभाव – प्रेरक का संबंध प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है। संबंध प्रतिक्रिया के लिए उत्तेजक में प्रतिक्रिया उत्पन्न करने की शक्ति होनी चाहिए ।भूख के कारण कुत्ते ने घंटी का खाने के साथ संबंध स्थापित किया। यदि प्रेरक प्रभाव नहीं होता। तो प्राणी उत्तेजको की और कोई विशेष ध्यान नहीं देगा। परिणाम स्वरूप कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी।

दो उत्तेजकों में समय का सम्बंध – संबंधित प्रतिक्रिया द्वारा सीखने में उद्देश्यों के मध्य समय का संबंध भी अधिक महत्वपूर्ण होता है।इसके लिए आवश्यक किया है कि पहले नवीन या कृतिम उत्तेजक प्रस्तुत किए जाएं।और तुरंत दिन के बाद पुराना या प्राकृतिक उत्तेजक प्रस्तुत किया जाए। पावलव के प्रयोग में पहले घंटे की ध्वनि की गई है।और उसके बाद खाना प्रस्तुत किया गया था।

उत्तेजकों का पूनरावृत्ति – संबंद्धता स्थापित करने के लिए आवश्यक है कि उत्तेजको को बार-बार दोहराया जाए। उदाहरण के लिए पावलव के प्रयोग में खाना देने से पूर्व घंटी से कई बार ध्वनि पैदा की गई थी।

नियंत्रित वतावरण – संबंद्धता की स्थापना के लिए आवश्यक है कि वातावरण नियंत्रित हो तो उस उत्तेजक ओं के अतिरिक्त अन्य कोई उत्तेजक नहीं होने चाहिए ।ध्यान को आकर्षित करने वाले अन्य उत्तेजक संबंध प्रतिक्रिया को सीखने में बाधा उत्पन्न करते हैं।

कृत्रिम उत्तेजक दृढ़ होना चाहिए – प्राकृतिक उत्तेजक की अपेक्षा कृतिम उत्तेजक अधिक चरण होते हैं ।यदि प्राकृतिक उत्तेजक अधिकतम है। तो सीखने वाला दूसरे उत्तेजक पर कोई ध्यान नहीं देगा। यदि भोजन कुत्ते की घंटे की ध्वनि से पहले दिया जाता तो घंटे की धुन पर कोई ध्यान नहीं देता।

मानसिक स्वास्थ्य – मानसिक स्वास्थ्य ठीक होने पर सम्बद्ध प्रक्रिया शीघ्र होती है।

पावलव के संबंध प्रतिक्रिया सिद्धांत की आलोचना

पावलव के सम्बन्ध प्रक्रिया सिद्धान्त की आलोचना कुछ मनोवैज्ञानिकों ने की है। उन्होंने यह बताया कि यह सिद्धांत जटिल विचार श्रंखला की उचित व्याख्या करने असफल रहा है।यह सिद्धांत मानव को यन्त्र की तरह मानता है। तथा मानव की विवेक और तर्क की अवहेलना करता है।जबकि सत्य है कि मानव मशीन की भांति नही है।वह क्रियाओं का संचालन चिंतन के आधार पर करता है।

इस सिद्धांत द्वारा अधिगम स्थाई रहता है।जब तक उत्तेजक बार-बार दोहराए जाते हैं। और उस समय तक संबद्धता बनी रहती है। यदि उत्तजको के संबंधों को समाप्त कर दिया जाए। तो प्रतिक्रिया प्रभावहीन हो जाती है। उद्देश्यों को कुछ काल तक प्रस्तुत नहीं किया जाए। तो प्राणी उससे संबंध प्रतिक्रिया को भूल जाएगा।

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