संवेग का अर्थ और परिभाषा , Meaning and definition of emotion in hindi

संवेग का अर्थ और परिभाषा , Meaning and definition of emotion in hindi :संवेग शब्द अंग्रेजी की इमोशन(Emotion) शब्द का हिंदी रूपांतरण है emotion शब्द की उत्तपत्ति लैटिन भाषा के Emovere शब्द से मानी जाती है।जिसका प्रयोग उत्तेजित करने , उथल पुथल आदि शब्दो मे प्रयोग किया जाता है।आज hindivaani संवेग का अर्थ, संवेग के प्रकार ,संवेग की विभिन्न शिक्षणशत्रियो के अनुसार परिभाषा , संवेग को प्रभावित करने वाले तथ्य या कारक आदि की जानकारी उपलब्ध कराएगा।

संवेग का अर्थ और परिभाषा , Meaning and definition of emotion in hindi

संवेग का अर्थ और परिभाषा , Meaning and definition of emotion in hindi
emotion psychology

विभिन्न शिक्षणशत्रियो के अनुसार संवेग (definition of Emotion psychology in hindi) की परिभाषा

वुडवर्थ के अनुसार संवेग की परिभाषा

“संवेग , व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।”

क्रो एंड क्रो के अनुसार संवेग(Emotion psychology) की परिभाषा

” संवेग एक भावात्मक अनुभूति है जो व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक उत्तेजनापूर्ण अवस्था तथा सामान्यीकृत आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी होती है। जिसकी अभिव्यक्ति व्यक्ति द्वारा प्रदर्शित बाहरी व्यवहार द्वारा होती है”

रास के अनुसार संवेग की परिभाषा

“संवेग चेतना की वह अवस्था है जिसमें राग्यात्मक तत्व की प्रधानता होती है।”

ड्रेवर के अनुसार संवेग की परिभाषा

” संवेग प्राणी की एक जटिल दशा है जिसमें शारीरिक परिवर्तन ,प्रबल भावना के कारण उत्तेजित दशा और एक निश्चित प्रकार का व्यवहार करने की प्रवृति निहित रहती है।”

किम्बल यंग के अनुसार संवेग की परिभाषा

“संवेग प्राणी की उत्तेजित मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दशा है जिसमें शारीरिक क्रियाएं और शक्तिशाली भावनाएं किसी निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए स्पष्ट रूप से बढ़ जाती हैं।”

जरसील्ड के अनुसार

“किसी भी प्रकार के आवेश आने ,भड़क उठाने तथा उत्तेजित हो जाने की अवस्था को संवेग कहते हैं ।”

पी.टी. यंग के अनुसार

“संवेग मनोवैज्ञानिक कारणों से उत्पन्न ने संपूर्ण व्यक्ति के तीव्र उपत्रों की अवस्था है जिसमें चेतना व्यवहार अनुभव और अंतरावयव के कार्य निहित होते हैं।”

संवेग (Emotion psychology) के प्रकार

मैक्डूगल ने 14 संवेग (Emotion psychology)और उसकी मूल प्रवृत्तियों को बतलाया है जो कि निम्न है।

मूल प्रवृत्तियां संवेग
पलायन Escapeभय fear
युयुत्सा combatक्रोध Anger
निवृत्ति repulsion घृणा Disgust
जिज्ञासा curiosityआश्चर्य Wonder
शिशुरक्षा parentalवात्सल्य love
शरणागति apealविषाद Distress
रचनात्मक
construction
संरचनात्मक भावना feeling of
creativeness
संचय प्रवृत्ति
Acquisition
स्वामित्व की भावना feeling of ownership
सामूहिकता
Gregariousness
एकाकीपन feeling of
loneliness
काम sexकामुकता lust
आत्म गौरव self assertionश्रेष्ठता की भावना positive self
feeling
दैन्य submissionआत्महीनता negative self
feeling
भोजन- अन्वेषण
food seeking
भूख appetite
हास laughterआमोद Amusement

बालक के संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

बालक के संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है।

1.परिवार
2.माता पिता का दृष्टिकोण
3.सामाजिक स्थिति
4.विद्यालय व शिक्षक
5.सामाजिक स्वीकृति
6.बालक का स्वास्थ्य
7.थकान
8.बुद्धि की मानसिक योग्यता
9.वंशानुक्रम

संवेग की विशेषताएं –

संवेग की विशेषतायें निम्नलिखित हैं।

तीव्रता – संवेग में तीव्रता पाई जाती है और वह व्यक्ति में एक प्रकार का तूफान उत्पन्न करता है। इस तीव्रता की मात्रा में परंतु अंतर होता है। उदाहरण के लिए – जैसे अशिक्षित व्यक्ति की अपेक्षा शिक्षित व्यक्ति में जो अपने समय पर नियंत्रण करना सीख जाता है।संवेग की तीव्रता कम होती है। इसी प्रकार बालकों की अपेक्षा वयस्कों में भी और स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में समय की तीव्रता कम पाई जाती है।

व्यापकता – संवेग में व्यापकता होती है।और वह सब प्राणियों के समान रुप में पाया जाता है। उदाहरण के लिए जैसे बिल्ली को उसके बच्चों को छेड़ने से ,बालक को उसका खिलौना छीनने से और मनुष्य की उसकी आलोचना करने से क्रोध आ जाता है।

सुख और दुख की भावना – स्टाउट के अनुसार ,” अपनी विशिष्ट भावना के अलावा संवेग में निसंदेह रूप से सुख या दुख की भावना होती है। उदाहरण के लिए जैसे हमें आशा में सुख का और निराशा में दुख का अनुभव होता है।

विचार शक्ति का लोप – संवेग हमारी विचार शक्ति का लोप कर देता है।अतः हम उचित या अनुचित का विचार किए बिना कुछ भी कर बैठते हैं। उदाहरण के लिए जैसे क्रोध के आवेश में मनुष्यता तक कर डालता है।

स्थिरता की प्रव्रत्ति – सामवेद के साधारण रूप से स्थिरता की प्रवृत्ति होती है।उदाहरण के लिए जैसे दफ्तर में डांट खाकर घर लौटने वाला क्लर्क अपने बच्चों को डांटता या पीटता है।

क्रिया की प्रवृत्ति – स्टाउट का विचार है कि संवेग में एक निश्चित दिशा में किया की प्रवृत्ति होती है। क्रिया की इस प्रवृत्ति के कारण व्यक्ति कुछ ना कुछ अवश्य करता है। उदाहरण के लिए जैसे लज्जा का अनुभव करने पर बालिका नीचे की ओर देखने लगती है।या अपने मुख्य को छिपाने का प्रयत्न करती है।

संवेग का शिक्षा में महत्व – ( Importance of emotions of education)

संवेग का शिक्षा के महत्व निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है।

  1. शिक्षक बालकों के संबंधों को जागृत कर के पाठ में उनकी रुचि उत्पन्न करता है।
  2. शिक्षक बालकों को संवेग में नियंत्रण लाने हेतु विभिन्न प्रकार की विधियां की जानकारी देता है।जिससे बालक सभ्य व शिष्ट बन सके।
  3. शिक्षक बालकों के संवेगो को जानकर उनके लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम का निर्माण करके सफलता पूर्वक अध्ययन करवाता है।
  4. शिक्षक बालकों में उचित संवेगों का विकास करके उनमें उत्तम विचारों आदर्शों गुणों और रुचियों का निर्माण कर सकता है।
  5. शिक्षक बालकों के भय ,क्रोध आदि अवांछित संवेगों का मार्गन्तिकरण करके , उनको अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता हैं।

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