शिक्षण सूत्र , Maxims of teaching in hindi

शिक्षण सूत्र , Maxims of teaching in hindi :: शिक्षण हमे किस क्रम , और कैसे देना है। इस संदर्भ में अनेक मनोवैज्ञानिक ने अपने विचारों को प्रस्तुत किया है। इस अनुभव को बालको के समक्ष प्रकट करना शिक्षण सूत्र कहलाता हैं। आज हिंदीवानी आपको शिक्षण सूत्र , Maxims of teaching in hindi की जानकारी प्रदान करेगा। जिसमे विभिन्न प्रकार के शिक्षण सूत्रों की जानकारी प्रदान की जाएगी।जैसे – ज्ञात से अज्ञात की ओर शिक्षण सूत्र ,सरल से कठिन की ओर शिक्षण सूत्र।तो आइए शुरू करते है।

शिक्षण सूत्र , Maxims of teaching in hindi

शिक्षण सूत्र , Maxims of teaching in hindi
शिक्षण सूत्र , Maxims of teaching in hindi

सरल से कठिन की ओर , From simple to complex

सामान्यता बालक सीखने में सरल तरीकों की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि शिक्षण कार्य करते समय छात्रों को सबसे पहले सरल चीजों का ज्ञान कराना चाहिए। जिससे उन्हें ऐसी चीजों का ज्ञान हो। जिसे वह पहले से परिचित हो तथा समझने पहले से परिचित हो तथा समझने समझने में उन्हें सहजता का अनुभव इसके लिए क्या जरूरी है।कि शिक्षण से पहले शिक्षक को छात्रों की रुचियां ,आयु एवं उसके वातावरण के बारे में पता कर लेना चाहिए। फिर मानसिक स्तर के आधार पर अनुकूल तत्वों की जानकारी छात्र को प्रदान की जानी चाहिए।

जैसे – गणित पढ़ाने से पहले छात्रों को जोड़ ,घटाना, गुणा भाग जैसे सरल चीजों की जानकारी प्रदान की जानी चाहिए। उसके पश्चात ही भिन्न है कि नियम प्रतिशत व बीजगणित और और रेखा गणित के सवाल दिए जाने चाहिए।

ज्ञात से अज्ञात की ओर , From known to unknown

बालक को पूर्व ज्ञान के आधार पर नया ज्ञान प्रदान करना बहुत ही आसान हो जाता है जिस विषय के बारे में बालक पहले से ज्ञान रखता है उस आधार पर ना जानने वाले ज्ञान को प्रदान करना आसान होता हैं। बालक हर दिन कुछ न कुछ नए अनुभव जफर सीखता हैं। परंतु वह उन्ही अनुभवों को अपने जीवन मे सम्मलित कर पाता हैं। जिनका वह पूर्व अनुभवों से सम्बन्ध स्थपित कर पाता हैं।

जैसे – गणित विषय में गिनती ओं के के जोड़ के सहारे पहाडा का ज्ञान कराना। रेखाओं के ज्ञान के बाद त्रिभुज चतुर्भुज आधी आकृतियों का ज्ञान कराना इसके अंतर्गत आता है।

स्थूल से सूक्ष्म की ओर , From concrete and abstract

जब बालक छोटे हैं। तो वह मूर्त वस्तुओं को देखते हैं जो स्थूल होती हैं।और उनकी क्रियाओं का अनुभव करते हैं। इसके पश्चात उसके संबंध में शब्द व अन्य बातों को सीखते हैं।प्रारंभ में हम देखते हैं कि बालक का इतना मानसिक विकास नहीं होता है। कि वह किसी भी वस्तु के सूक्ष्मतम ज्ञान को प्राप्त कर सकें।लेकिन किसी वस्तु को देखकर ,छूकर वे आसानी से उसके बारे में जान सकते हैं। अतः बालक को स्कूल से सोच में की और शिक्षा शिक्षा की और शिक्षा शिक्षा शिक्षा की और शिक्षा शिक्षा में की और शिक्षा शिक्षा की और शिक्षा शिक्षा प्रदान करना प्रभावी शिक्षण सिद्ध होता है।

जैसे – यदि बालक को बताया जाए कि दो और तीन मिलाकर पांच मिलाकर पांच होते हैं।तो वह इस चीज को आसानी से नहीं समझ पाएगा।लेकिन यह बताया जाए कि दो केले तथा तीन केले को अलग-अलग को अलग-अलग केलो को एक साथ मिलाया जाए। और गिनने के लिए कहा जाए तो वह स्वयं ही जान जाएगा। कि दो और तीन मिलाकर पांच मिलाकर पांच होते हैं।

पूर्ण से अंश की ओर , From whole to parts

सीखते समय बालक किसी भी अवधारणा को पूर्ण रूप से ग्रहण करते हैं। क्योंकि किसी भी स्वरुप का प्रथम प्रत्यक्षीकरण पूर्ण आकार आकार में ही होता है। इसलिए बच्चों को विषय वस्तु की अवधारणाओं को पूर्ण आकार में कक्षा में प्रस्तुत करना चाहिए।

जैसे – जब हम किसी देश के मानचित्र को दिखाते हैं। तो उसे हम पूरा ही दिखाते हैं। उसे हम अंश में नही दिखाते हैं। अलग अलग उसके भाग दिखाने से बालक को समझ मे नही आएगा। इसीलिए विषयवस्तु के आधार पर उसे पूर्ण रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर , From seen to unseen

बालक को सर्वप्रथम उन वस्तुओं ज्ञान देना चाहिए।जिन वस्तुओं को वह देख सकता है।इसके पश्चात उसे उन बातों का ज्ञान प्रदान करना चाहिए।जिसको वह देख नहीं सकता है।दूसरे शब्दों में कहें तो बालक को सर्वप्रथम वर्तमान का ज्ञान कराना चाहिए।तत्पश्चात ही भूत या भविष्य का ज्ञान कराना चाहिए।क्योंकि जो वस्तु के बालक के सामने होती है। उनका ज्ञान वह बहुत ही सरलता पूर्वक प्राप्त कर सकता है।इसीलिए अप्रत्यक्ष वस्तुओं का ज्ञान कराने से पहले हमें प्रत्यक्ष वस्तुओं का ज्ञान अवश्य करा देना चाहिए।

विशिष्ट से सामान्य की ओर , From particular to general

बच्चों के हो सर्वप्रथम विशेष उदाहरण देना चाहिए। फिर उनमें से छात्रों से एक सामान्य नियम अथवा सिद्धांत निकलवाना चाहिये।इसमें करके सीखने ,स्थूल से सूक्ष्म की ओर वाले सूत्रों का पालन किया जाता है।विशिष्ट से सामान्य की ओर चलने में हम परिभाषाएं निश्चित करते हैं।नियम निकालते व सिद्धांत पर निरूपण करते हैं।

विश्लेषण से संश्लेषण की ओर, From Analysis to synthesis

किसी समस्या की ऐसी इकाई करनी चाहिए। जिनके जोड़ने पर समस्या का हल तैयार हो सके।उसे विश्लेषण कहा जाता है।और खंडों से प्राप्त ज्ञान को जब जोड़ दिया जाए।तो एक नवीन अवधारणा उत्पन्न होती है। उसे हम संश्लेषण कहते हैं। इस शिक्षण सूत्र के अनुसार पहले किसी ज्ञान को खंडों में समझना चाहिए। फिर उनका संश्लेषण का पूर्ण पूर्ण रूप करना चाहिए।

मनोविज्ञान से तर्कसंगत की ओर , From psychological to logical

मनोविज्ञान का यह मानना है।कि जिस क्रम में बच्चा स्वाभाविक रूप से सीखता है।विद्यालय में भी उसी क्रम में बच्चे को शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

उदाहरण के लिए बच्चे को पहले वाक्य के फिर शब्द फिर अक्षर को सिखाना चाहिए।लेकिन यह क्रम मौखिक भाषा के लिए होता है।लेकिन भाषा में हमें अक्षर से चलना चाहिए। मूल ध्वनियों को किसी क्रम में भी सिखाया जाए या तर्कशास्त्र का विषय है।

अनुभव से युक्तियुक्त की ओर , From empirical to rational

बच्चे का अपने अनुभव के द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई रूप में होता है। पर बच्चे जो कुछ देखते हैं।सीखते अनुभव करते हैं। उसे तर्क की कसौटी पर भी करना चाहिए।और बच्चों की इस जिज्ञासा को जब तक सामने नहीं किया जा सकता तब तक शिक्षण कार्य पूर्ण नहीं हो सकता।

उदाहरण – बच्चे भिन्न भिन्न आकार तथा प्रकार के त्रिभुज के तीनों कोणों को नाप कर उनको जोड़ दिया। तो वह दो दो वह दो दो समकोण 180 अंश होता है। आगे चलकर बच्चोंके इस अनुभव को तर्क के साथ पुष्ठ करना होगा।कि प्रत्येक त्रिभुज के तीनों अंतः कोणों का योग 180 अंश ही क्यों होता है।

प्रकृति का अनुसरण , Follow nature

शिक्षण सूत्र का प्रतिपादन रूसो ने किया था।उन्होंने कहा था कि बच्चा जन्म में जब पैदा होता है।तो वह शुद्ध होता है। परंतु समाज दूषित होने के कारण वह भी दूषित हो जाता है। उन्होंने यह नारा दिया कि बच्चे का विकास प्राप्त रूप से होना चाहिए।इसके लिए उन्होंने कहा कि बच्चे को अपनी प्रकृति के अनुसार विकास का अवसर देने के साथ शिक्षण प्रदान करना चाहिए। छोटे बच्चों को खेल विधि द्वारा तथा बड़े बच्चों को अन्य मनोवैज्ञानिक विधि द्वारा शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

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