महावीर स्वामी जी का जीवन परिचय :: नमस्कार दोस्तों ,Hindivaani आज इस आर्टिकल के माध्यम से आपके सामने महावीर स्वामी जी का जीवन परिचय बताने जा रहा हूं।हम इसके अंतर्गत उनके विवाह , वैराग्य जीवन और तपस्या आदि की जानकारी प्रदान करेंगे। साथ साथ महावीर स्वामी जी के जीवन मे घटी सभी चीजो के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। तो आइए शुरू करते है।
महावीर स्वामी जी का जीवन परिचय

महावीर स्वामी जी का जीवन परिचय
भगवान महावीर स्वामी जी का जन्म आज से लगभग ढाई हजार साल पहले 599 ईसा पूर्व में हुआ था। महावीर स्वामी जी का जन्म वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुंडलपुर में हुआ था। इनके पिता जी का नाम सिद्धार्थ और माताजी का त्रिशला देवी था। महावीर स्वामी जी के बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर स्वामी जी के एक भाई और एक बहन थी भाई का नाम नंदिवर्धन और बहन सुदर्शना थी । महावीर स्वामी जी बचपन से ही साहसी ज्ञानी तेजस्वी और अति बलशाली थे। महावीर स्वामी जी बहुत ही शांत स्वभाव के व्यक्ति थे।
महावीर स्वामी जी का जन्म एक साधारण बालक के रूप में हुआ था पर इन्होंने अपनी तपस्या के बल से अनूठा परिश्रम हासिल किया। और उन्होंने अपने तपस्या की ही दम से एक नए समाज की स्थापना की।
महावीर स्वामी जी की शिक्षा पूरी होने के बाद उनका विवाह यशोदा के साथ कर दिया गया था। महावीर स्वामी जी की एक पुत्री थी जिसका नाम प्रियदर्शन था जिनका विवाह जमली के साथ हुआ था।
भगवान महावीर स्वामी जी की जन्मतिथि पूरे भारतवर्ष में जैन समाज द्वारा बहुत ही उत्सव से मनाया जाता है। भगवान महावीर जयंती प्रति वर्ष चैत्र माह के 13 वे दिन मनाई जाती है। महावीर स्वामी जी का जन्मदिवस पूरे भारतवर्ष में पूरे उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है और इस दिन पूरे भारतवर्ष में सरकारी छुट्टी भी होती है। जैन धर्म के लोग इन्हें अपने भगवान के रूप में भी मानते हैं। उनके दर्शन को लोग गीता के सामान मानते थे।
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महावीर स्वामी जी के जन्म और जीवन को लेकर कुछ कथाएं
कहा जाता है कि जब महावीर स्वामी जी का जन्म हुआ था तब उनके जन्म की खुशी को लेकर पूरे 10 दिन उत्सव मनाया गया था। और राजा सिद्धार्थ का यह भी कहना था कि महावीर स्वामी जी के जन्म के बाद इनके भंडारण में हरदम खजाने की वृद्धि होती रही। इसीलिए राजा सिद्धार्थ ने इनका बचपन में नाम वर्धमान रखा था।
महावीर स्वामी जी का विवाह
कहा जाता है कि महावीर स्वामी जी बचपन से ही बहुत ही शांत स्वभाव के थे और इनका बहरी जिंदगी में कोई लगाव नहीं था। इसी शांत स्वभाव को देखते हुए इनकी माता पिता ने इनके शिक्षा के बाद तुरंत विवाह यशोदा से कर दिया था। और इनकी एक पुत्री भी हुई जिसका नाम प्रियदर्शना ना था।
महावीर स्वामी जी का वैराग्य जीवन
कहा जाता है कि जब महावीर स्वामी जी की माता पिता की मृत्यु हो गई तो वह बहुत ही दुखी हो गए थे। और उन्होंने अपने माता पिता की मृत्यु के बाद वैराग लेने का निश्चय कर लिया और उन्होंने इसके लिए अपने बड़े भाई से बात की तब इनके बड़े भाई ने इनको कुछ दिन रुकने के लिए बोला। महावीर स्वामी जी अपने माता पिता के मृत्यु के 2 साल बाद वैराग जीवन के और अपना पहला कदम बढ़ा दिया था। महावीर स्वामी जी जब अपना वैराग जीवन लिया था तब उनकी उम्र मात्र 30 साल की थी।
महावीर स्वामी जी अपना घर त्यागने के बाद केशलोच के साथ जंगल में रहने लगे। महावीर स्वामी जी 12 वर्ष लगातार कठोर तपस्या के बाद ऋजुपालिका नदी के किनारे एक साल्व वृक्ष के नीचे इनको ज्ञान प्राप्त हुआ। बाद में इन्हें केवलिन नाम से जाना गया। स्वामी महावीर जी का यस चारों और फैलने लगा और इनके बड़े बड़े राजा इनके अनुयाई बनने लगे। 30 साल तक इन्होंने प्रेम अहिंसा त्याग का उपदेश देते रहे फिर यह जैन धर्म के
चौबीसवें तीर्थंकर बने और पूरे विश्व में यह एक महान महात्मा के रूप में प्रसिद्ध हुए।
तपस्या और सर्वज्ञता
महावीर स्वामी जी ने लगातार 12 साल जंगल में कठोर तपस्या की। उन्होंने हर प्राणी के साथ अहिंसा का रूप बनाया। कहां जाता है कि महावीर स्वामी जी के 12 साल के तपस्या के अंतर्गत उन्होंने उत्तर प्रदेश बंगाल उड़ीसा बिहार के जंगलों में भी तपस्या की थी। महावीर स्वामी जी तपस्या के टाइम केवल 3 घंटे सोते थे।
आध्यात्मिक यात्रा
स्वामी जी जिस जंगल में रहते थे वहां पर उन्होंने 11 ब्राह्मणों को बुलाया जो लोग उनके द्वारा दिए गए उपदेश को लिखित रूप से लिख सकें। यही उपदेश आगे चलकर त्रिपादी ज्ञान, उपनिव, विगामिवा और धुवेइव के नाम से जाने गए।
संस्था का निर्माण
महावीर स्वामी जी की शिष्य धीरे धीरे अपने मित्र गण और आपने सगे संबंधियों को महावीर स्वामी जी के उपदेश सुनाने के लिए लाने लगे। महावीर स्वामी जीवनी सुखद जीवन और मोच प्राप्त किए ज्ञान देने लगे और धीरे-धीरे इनकी अनुयायियों की संख्या लाखों में बढ़ती हुई चली गई। महावीर जी के संस्था में 14 हजार मुनि, 36 हजार आर्यिका, 1 लाख 59 हजार श्रावक और 3 लाख 18 हजार श्राविका थी. ये 4 समूह अपने आप में ही एक तीर्थ थे.
महावीर का जैन धर्म अपनाना
महावीर स्वामी जी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर बने। महावीर जी के जन्म लेकर इतिहासकारों में बहुत सारे मतभेद हैं। किसी का यह भी मत है कि इनका जन्म भारत में ही हुआ था। भारतवर्ष को महावीर जी ने बहुत अधिक प्रभावित किया था। पूरे भारतवर्ष के अधिकतर राजा महावीर स्वामी जी के अनुयाई बन गए थे और अधिकतर राजा जैन धर्म को अपना लिया था।
महावीर स्वामी जी ने जातिवाद का जमकर विरोध किया था और उनका मानना था कि सभी मनुष्य एक समान रूप से हैं। महावीर स्वामी जी का एक ही सिद्धांत था जियो और जीने दो।
महावीर स्वामी जी के उपदेश
महावीर स्वामी जी हरदम अहिंसा तप, संयम अपरिग्रह एवं आत्मवाद का संदेश दिया । महावीर स्वामी जी शुरुआत से यज्ञ में होने वाले पशु पक्षी बली का पुरजोर विरोध करते थे। और वह हर दम से किसी को भेदभाव ना करने के लिए उपदेश दिया करते थे।
महावीर स्वामी जी की मृत्यु
महावीर स्वामी जी ने अपना आखिरी उपदेश पावापुरी नगरी में दिया था। कहां जाता है की यह समागम 48 घंटे लगातार चला था। महावीर स्वामी जी की मृत्यु 527 ईसा पूर्व में हुई थी।
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