कोहलर का अंतर्दृष्टि सूझ का सिद्धांत | kohler’s sense and Insight learning theory in hindi: इस सिद्धांत को गेस्टाल्ट सिद्धांत, समग्र सिद्धांत ,अंतर्दृष्टि सिद्धांत या सूझ का सिद्धांत आदि नामों से जाना जाता है। इस सिद्धांत के प्रतिपादकों में चार जर्मन मनोवैज्ञानिक मैक्स वर्दीमर, वोल्फगैंग कोहलर, कुर्ट कोफ़्का, कुर्ट लेविन है।
कोहलर का अंतर्दृष्टि सूझ का सिद्धांत | kohler’s sense and Insight learning theory in hindi

अंतर्दृष्टि या सूझ का कोहलर का सिद्धांत का अर्थ
व्यक्ति सर्वप्रथम अपने आसपास की परिस्थितियों को विभिन्न अंगों में पारस्परिक संबंधों की स्थापना करता है।और संपूर्ण परिस्थितियों को समझने के पश्चात वह परिस्थिति के अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।दूसरे शब्दों में सूझ द्वारा सीखने का तात्पर्य परिस्थिति को पूर्णतया समझकर सीखना है।
कोहलर का सिद्धांत का प्रयोग
कोहलर ने छह वनमानुषों को एक कमरे में बंद कर दिया। कमरे की छत में उसने केले के गुच्छे को लटका दिया।समस्त वनमानुष केले को प्राप्त करने का प्रयास करने लगे। परंतु सभी असफल हुए उनमें से एक सुल्तान नाम का वनमानुष था। उसने देखा कि कमरे में एक बॉक्स रखा है।वह इधर-उधर घूमने के पश्चात बॉक्स के पास पहुंचा।और उसके बाद उसने बॉक्स को पकड़कर खींचा और उसने केले के नीचे उस बॉक्स को घसीट कर ले आया।और बॉक्स के ऊपर खड़े होकर केले के गुच्छे को उतार कर खा लिया। सुल्तान की इस प्रकार केलो को प्राप्त करने से स्पष्ट हो जाता है।कि उसमें अन्य वनमानुष की अपेक्षा अधिक सूझ थी।
सूझ के सिद्धांत की विशेषताएं
सूझ के सिद्धांत की विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
- सीखने की प्रकृति संज्ञानात्मक होती है।
- अधिगम या सीखना अचानक होता है।
- सीखने की प्रक्रिया यंत्रवत नहीं होती है।
- सीखने की प्रकृति स्थाई होती है।
- सीखने की प्रक्रिया में प्राप्त सूझ अचानक होती है।
सूझ पर प्रभाव डालने वाले कारक
सूझ पर प्रभाव डालने वाले महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं।
प्रत्यक्षीकरण – अंतर्दृष्टि का आधार प्रत्यक्षीकरण है ।यदि समस्या का ठीक प्रकार से प्रत्यक्षीकरण नहीं होगा।तो अंतर्दृष्टि का विकास संभव नहीं है।
बुद्धि – बुद्धि भी अंतर्दृष्टि को प्रभावित करती है।उच्च बौद्धिक स्तर वाले जीवो में अंतर्दृष्टि अधिक क्रियाशील रहती है।
समस्या की रचना – समस्या की रचना भी अंतर्दृष्टि को प्रभावित करती है।अव्यवस्थित तथा जटिल रचना वाली विषय वस्तु में प्रत्यक्षीकरण में व्यवधान पैदा हो जाता है।
अनुभव – अनुभव का अंतर्दृष्टि के विकास में योगदान है। अनुभवी व्यक्ति अंतर्दृष्टि द्वारा समस्या का हल शीघ्र ढूंढ लेता है।
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अंतर्दृष्टि व सूझ के सिद्धांत का शिक्षण में उपयोग
(1)बालकों के सामने पूरे समस्या को एक साथ प्रस्तुत करना चाहिए।
(2)बालकों को सिखाने से पहले उन्हें मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए।तथा बालकों को सीखने के लिए उचित वातावरण का निर्माण कर लेना चाहिए।
(3)अध्यापक द्वारा सीखने से पहले बालकों के अंदर जिज्ञासा उत्पन्न कर देनी चाहिए जिससे कि बालकों के अंदर सूझ उत्पन्न हो सके।
(4)विद्यालय में कार्य, पाठ सामग्री तथा शिक्षण संबंधी गतिविधियां बालकों की सूझ के अनुसार होनी चाहिए।
(5)अध्यापकों को छात्र की पूर्व अनुभवों को संगठन कर उन पर ध्यान ,देकर के किसी विषय वस्तु को समझाना चाहिए।
शिक्षा में अंतर्दृष्टि के सिद्धांत का महत्व
शिक्षा में अंतर्दृष्टि के सिद्धांत का महत्व निम्नलिखित है।
पूर्ण समस्या का प्रस्तुतिकरण – अध्यापक द्वारा कुछ समस्या छात्रों के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।यदि समस्या को टुकड़ों को रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। तो छात्र सूझ का समस्या का हल ढूंढने में सफल नहीं होंगे किसी भी समस्या में उस समय तक सूझ उत्पन्न नहीं होगी जब तक कि वह समग्र रूप में छात्र के समक्ष प्रस्तुत ना की जाए।
तत्परता का विकास – छात्र में अधिगम की प्रक्रिया उस समय तक गतिशील नहीं होगी।जब तक कि छात्रों में ज्ञानात्मक इन संवेगात्मक तत्परता नहीं होगी। बालकों को मानसिक रूप से सीखने के लिए तत्पर बनाने के लिए अध्यापकों को अनुकूल वातावरण बनाना होगा।बालकों को पूर्ण धारणाओं से मुक्त करना चाहिए।
विषय संगठन – विषय वस्तु की संरचना तथा संगठन का अंतर्दृष्टि द्वारा सीखने पर अधिक प्रभाव पड़ता है। अध्यापक को विषय वस्तु इस रूप से प्रस्तुत करनी चाहिए कि वह समस्या को समग्र रूप से समझ सके।
जिज्ञाशा का विकास – बालकों का अवदान समस्या में केंद्रित करने के लिए आवश्यक है। कि अध्यापक द्वारा सीखने में बालकों की जिज्ञासा को बनाए रखा जाए ।बिना जिज्ञासा की सोच का विकास नहीं है।
अनुभवों का प्रयोग – सूझ द्वारा सीखने में अनुभव का अधिक योगदान रहता है।अध्यापक को छात्रों के पूर्व अनुभव के संगठन पर कार्य करना चाहिए।
विषय वस्तु का क्षमतानुसार – अंतर्दृष्टि के विकास के लिए आवश्यक है कि विद्यालय का कार्य छात्र की सूझ के अनुकूल होना चाहिए।यदि छात्र की क्षमता से ऊंचे स्तर का विद्यालय का कार्य होगा। तो अंतर्दृष्टि का विकास संभव नहीं होगा बोर्ड के परीक्षा में अधिक संख्या में छात्रों के अनुत्तीर्ण होने का कारण यह भी है।कि वह कार्य का अधिक कठिन होना है।या पाठ्य पुस्तकें ऐसी होती हैं जो सोच का विकास नहीं करती है।
प्रेरणा – अंतर्दृष्टि द्वारा सीखने में अभिप्रेरणा का अधिक योगदान रहता है।अंतर्दृष्टि का विकास तभी संभव है।जबकि उद्देश्य छात्रों को स्पष्ट होंगे।तथा छात्रों के लिए उपयोगी होंगे उद्देश्यों का स्पष्टीकरण करके अध्यापक वालों को प्रेरित कर सकता है।
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