चिंतन का अर्थ और परिभाषा, चिंतन के सोपान :आज का hindivaani का टॉपिक हैं। चिंतन का अर्थ और परिभाषा, चिंतन के सोपान। इसमे आपको यह पता चलेगा। कि चिंतन किसे कहते है। साथ ही साथ सभी जानकारियां चिंतन से सम्बंधित आपको यहां उपलब्ध होगी।
चिंतन का अर्थ और परिभाषा, चिंतन के सोपान

चिंतन का अर्थ (meaning of thinking)
मनुष्य के सामने कभी ना कभी किसी प्रकार की समस्या जरूर आती है। समस्या के समाधान के लिए वह किसी ने किसी प्रकार का उपाय जरूर सोचता है।उसकी इस प्रकार सोचते और विचार करने की क्रिया को चिंतन कहते हैं।
चिंतन की परिभाषाएं (definition of thinking)
चिंतन की परिभाषा विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुसार निम्नलिखित हैं।
रॉस के अनुसार
” चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है।या मन की बातों से संबंधित मानसिक क्रिया है।”
वैलेंटाइन के अनुसार
“चिंतन शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिए किया जाता है। जिसमें श्रृंखलाबद्ध विचार किसी लक्ष्य या उद्देश्य की ओर अविराम गति से प्रवाहित होते हैं”
रायबर्न के अनुसार चिंतन की परिभाषा
“चिंतन इच्छा संबंधी क्रिया है।जो किसी असंतोष के कारण आरंभ होती है।और प्रयास के आधार पर चलती हुई स्थिति पर पहुंच जाती है जो इच्छा को सन्तुष्ट करती है।”
चिंतन की विशेषताएं (characteristics of thinking)
चिंतन की विशेषताएं निम्नलिखित है।
- चिंतन मानव का एक विशिष्ट गुण है ।
- चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है ।
- चिंतन किसी वर्तमान या भावी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए एक प्रकार का व्यवहार है।
- चिंतन के दौरान किसी भी समस्या का समाधान खोजने का प्रयत्न करते हैं।
- चिंतन किसी भी व्यक्ति की सहायता करने के लिए हमें समाधान प्रस्तुत करती है।
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चिंतन के प्रकार(kinds of thinking)
चिंतन के चार प्रकार निम्नलिखित हैं।
(१) प्रत्यक्षात्मक चिंतन(perceptual thinking)
इस प्रकार के चिंतन में पूर्व आधारित वस्तुओं के आधार पर यह चिंतन किया जाता है। उदाहरण के रूप में देखा जाए तो जब किसी बच्चे के माता-पिता बाजार जाते हैं। और उसके लिए खिलौना ले करके आते हैं। तो बच्चे की आदत हो जाती है।उन वस्तुओं को प्राप्त करने की और वह जब भी अपने माता-पिता को बाजार से वापस आते हुए देखता है।तो तुरंत उनके पास जाता है।यह चिंतन विशेष रूप से पशुओं और बालकों में पाया जाता है इसमें भाषा और नाम का प्रयोग नहीं किया जाता है।
(२)प्रत्ययात्मक चिंतन (conceptual thinking)
इस प्रकार के चिंतन में पूर्व निर्मित प्रत्ययोके आधार पर चिंतन किया जाता है। जिसके आधार पर भविष्य की किसी निर्णय पर पहुंचा जा सकता है। इस प्रकार से देखा जाए जैसे बालक किसी कुत्ते को देखकर अपने मन में किसी भी प्रकार का विचार निर्माण कर लेता है ।और भविष्य में वह जब उसी कुत्ते या किसी अन्य कुत्ते को दे देखता है।तो उसकी ओर संकेत करके कहता है कि यह कुत्ता है ।
(३) कल्पनात्मक चिंतन(imagininative thinking)
कल्पनात्मक चिंतन के अंतर्गत इस प्रकार का चिंतन का संबंध पूर्व अनुभव के आधार पर भविष्य से होता है।जब बच्चे के माता-पिता बाजार जाते हैं।तो वह कल्पना कर लेता है कि उसके लिए वह बाजार से काफी जरूर लाएंगे। इस चिंतन में भाषाओं नाम का प्रयोग नहीं किया जाता है।
(४) तार्किक चिंतन(logical thinking)
यह एक प्रकार से उच्च स्तर का चिंतन माना जाता है। इसका संबंध की भी समस्या के समाधान से होता है।जान डीवी ने इसको विचारात्मक चिंतन भी कहा है। चिंतन की क्रिया में अनेक प्रकार की क्रिया शामिल होती हैं।इसमें प्रमुख भूमिका रहती है प्रयास एवं भूल कि। इसमें विचार का संकेत रहता है। सड़कों पर हम जब यह लिखा हुआ देखते हैं।कि सावधानी हटी दुर्घटना घटी ।इसमें सावधान रहने का संकेत है। चिंतन ज्ञानात्मक दिया है। इसमें प्रत्यय तथा कल्पनात्मक ज्ञान नहीं होता है।प्रतीकों का प्रयोग इसमें किया जाता है।
चिंतन के सोपान(steps of thinking)
चिंतन के सोपान निम्लिखित हैं।
(१)समस्या का आकलन(Appreciation of problem)
चिंतन समस्या के उत्पन्न होने से संपन्न होता है मूर्खता अमूर्त समस्याएं जिज्ञासा के माध्यम से चिंतन का आरंभ करते हैं। मूर्त से अमूर्त की ओर इस पद में बड़ा जाता है।
(२) सम्बन्धित तथ्यों का संकलन(collection of data)
समस्या को समझने के बाद उन तत्वों को एकत्र किया जाता है।जो समस्या का कारण खोजने में शामिल सहायक सिद्ध होते हैं तथ्यों के संकलन में प्रेरणा का महत्व होता है।
(३) निष्कर्ष पर पहुचना(driving at conclusion)
तथ्यों का संकलन कर उनका विश्लेषण किया जाता है फिर उसके पश्चात विश्लेषण से किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है।
(४) निष्कर्ष का परीक्षण(testing conclusion)
चिंतन में प्राप्त परिणामों का परीक्षण कर उसकी जांच की जाती है इसे चिंतन की वैधता एवं विश्वसनीयता की परीक्षा भी हो जाती है।
चिंतन के विकास का उपाय ( Methods of developing thinking) –
चिंतन के विकास के उपाय निम्नलिखित माने जाते हैं।जिन्हें हम आगे विस्तार से आपको बताएंगे।
- भाषा चिंतन के माध्यम और अभिव्यक्ति की आधारशिला मानी जाती हैं।अतः शिक्षक को बालकों के भाषा ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए।
- ज्ञान चिंतन का मुख्य स्तंभ माना जाता है।अतः शिक्षकों बालकों के ज्ञान का विस्तार करना चाहिए।
- तर्क वाद विवाद और समस्या समाधान चिंतन शक्ति का प्रयोग करने का अवसर देती हैं।आता शिक्षक को बालकों को इन बातों के लिए अवसर देना चाहिए।
- रुचि और जिज्ञासा का चिंतन में महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।अतः शिक्षक को बालकों की इन प्रवृत्तियों को भी जागृत करना चाहिए।
- शिक्षक को अपने अध्यापन के समय बालकों से विचारात्मक प्रश्न पूछ कर उसकी चिंतन की योग्यता में वृद्धि करनी चाहिए।
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