भाषा अधिगम और भाषा अर्जन में अंतर ( diffrence between Language Learning and Language Acquisition)

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भाषा अधिगम और भाषा अर्जन में अंतर ( diffrence between Language Learning and Language Acquisition in hindi)

diffrence between Language Learning and Language Acquisition in hindi

भाषा अर्जन(Language Acquisition)

भाषा अर्जन(Language Acquisition) एक ऐसी प्रक्रिया है।जिसके अंतर्गत हम अपने आस पास के वातावरण, माता पिता और अपने से बड़ो व्यक्तियों के सम्पर्क में रहकर भाषा को सीखते है। यह एक प्राकृतिक प्रकिया है।इसके लिए कोई औपचारिक साधन की आवश्यकता नही पड़ती है। यह एक प्रकार से मातृ भाषा या क्षेत्रीय भाषा होती है। इसे भाषा प्रथम(language first) के नाम से भी जानते है।

स्वाभाविक रूप से भाषा सीखने की एक निश्चित आयु 2 से 14 वर्ष होती है। जिसे हम ” क्रिटिकल पीरियड के नाम से जानते है। मस्तिष्क के बाएं भाग के स्थिति “वर्निकेज क्षेत्र” और “ब्रोकज क्षेत्र” भाषा सम्बन्धित गतिविधियों को सीखने में सहायक होता है। ये क्रमशः भाषा को बोलने व समझने के लिए उत्तरदायी होता है। मस्तिष्क के इस भाग में चोट लगने पर भाषा प्रभवित होती है।

भाषा अधिगम (Language Learning)

भाषा अधिगम ( Language Learning) जिन भाषाओ को सीखने के लिए हम औपचारिक साधनों का प्रयोग करते है। साथ ही साथ जिसे सीखने के लिए नियम और ग्रामर होती है। उसे भाषा अधिगम कहते है।इसे भाषा द्वितीय के नाम से जानते है। इसके अंतर्गत क्षेत्रीय भाषा के अलावा अन्य भाषाएँ आदि जाती है। इसमे अंग्रेजी भाषा भी आ जाती है।

इसके लिए कॉपी किताब और स्कूली शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है। द्वितीय भाषा मे शुद्धता और धारा प्रवाहिता समय के साथ आती है। द्वितीय भाषा को सीखने के लिए सम्प्रेषणपरख मौहाल, बोधगम्य सामग्री की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।

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भाषा अधिगम और भाषा अर्जन में अंतर ( diffrence between Language Learning and Language Acquisition)

भाषा अर्जन 【Language Acquisitionभाषा अधिगम【 Language Learning
भाषा अर्जन एक प्राकृतिक
प्रक्रिया है और यह Subconsciously होता है।
भाषा अधिगम के लिए conscious effort करने पड़ते हैं।
भाषा अर्जन आस पास के वातावरण,आस पास के लोगो के माध्यम से ही सिख जाते है।भाषा अधिगम के लिए नियम और ग्रामर की जरूरत
पड़ती है।
भाषा अर्जन के द्वारा हम बोलना व समझना सिख जाते है भाषा अधिगम के द्वारा हम पढ़ना लिखना सीखते है।
भाषा अर्जन में किताब और व्याकरण की जरूरत नही पड़ती।भाषा अधिगम में किताब और
व्याकरण की जरूरत पड़ती हैं।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन को प्रभावित करने वाले कारक –

विद्यार्थी के भाषाई विकास एवं अर्जन को विभिन्न सामाजिक व व्यक्तिगत परिस्थितियां प्रभावित करती हैं जो निम्नलिखित हैं।

●सामाजिक परिवेश प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वाइगोत्सकी का मत है।कि भाषा उसके समाज के साथ संपर्क का परिणाम होती है।समाज में जैसी भाषा का प्रयोग किया जाता है। व्यक्ति की भाषा उसी के अनुरूप निर्मित होती है। यदि समाज में अशुद्ध हुआ असभ्य भाषा का प्रयोग होगा। तो व्यक्तिवाचक भी अशुद्ध शब्द होने की संभावना बनी रहेगी। व्यक्ति की भाषा पर उसके परिवेश का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

●भाषा अर्जन की इच्छा व्यक्ति अपनी प्रथम भाषा अर्थात मातृभाषा को तो सहज रूप से सीख लेता है।किंतु द्वितीय भाषा का अधिगम एवं अर्जन उसकी भाषा सीखने की प्रतीक्षा शक्ति पर निर्भर करता है।

●दैनिक जीवन के अनुभव मनोवैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान उसे प्राप्त जानकारी के आधार पर स्पष्ट किया है।कि बालक उन विषय वस्तुओं को शीघ्र सीखा और समझ लेता है। जिससे दैनिक जीवन में उसका संबंध होता है।या विचार इस बात की पुष्टि करता है।कि यदि भाषा का संबंध विद्यार्थियों के दैनिक जीवन के अनुभवों से जोड़ दिया जाए तो भाषा अधिगम की प्रक्रिया सरल और त्वरित बनाई जा सकती है।

फाइनल वर्ड –

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