विकास के सिद्धान्त|Principles of development: जब बालक एक अवस्था से दूसरी अवस्था मे प्रवेश करता है। तो उसमें काफी परिवर्तन पाए जाते है। ये परिवर्तन विभिन्न प्रकार के सिद्धान्त का अनुसरण करते है। इन सिद्धांतों को विकास के सिद्धान्त कहते है। आज hindivaani विस्तृत रूप से विकास के सिद्धांत की जानकारी आप सभी को उपलब्ध कराएगा।
विकास के विभिन्न सिद्धांत ,विकास का सिद्धांत किसने दिया था,विकास का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया,बाल विकास के प्रमुख सिद्धांत,किशोरावस्था के विकास के सिद्धांतों,एकीकरण का सिद्धांत किसने दिया, विकास की दिशा का सिद्धांत, विकास के सिद्धान्त कौन कौन है, principles of development
विकास के सिद्धान्त|Principles of development

विकास के सिद्धांत निम्नलिखित है।
विकास के सिद्धान्त (principles of development)
निरंतर विकास का सिद्धांत- (principle of continuous growth)
निरंतर विकास के सिद्धांत के अनुसार विकास की प्रक्रिया बिना रुके हुए चलती रहती है।परंतु यह कभी धीमी और कभी तेज जरूर हो जाती है। जैसे – प्रथम 3 वर्ष में बालक के विकास की प्रक्रिया बहुत ही ज्यादा तेज गति से चलती है।और उसके बाद धीरे-धीरे वह धीमी हो जाती है।
विकास के विभिन्न गति का सिद्धांत(priciple of different rate of growth)
डग्लस एवं हालैंड ने इस सिद्धांत की जानकारी देते हुए बताया है।कि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में विकास की गति भिन्न-भिन्न पाई जाती है।और यह भिन्नता विकास के संपूर्ण समय में इसी भांति से चलती रहती है।जैसे – जिस व्यक्ति के जन्म के समय लंबाई अधिक होती है। वह व्यक्ति बड़ा होने पर भी लंबा होता है।और जो छोटा होता है वह साधारणतया छोटा ही रहता है।
विकास क्रम का सिद्धांत (principle of development sequence)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक का गामक और भाषा संबंधी आज विकास एक निश्चित क्रम में होता है।
विकास की दिशा का सिद्धांत(principle of development direction)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास सिर से पैर की ओर होता है । इसे मनोवैज्ञानिकों के द्वारा ही सिद्धांत को मस्तकेघोमुखी कहा जाता हैं।इसमे पहले शिशु का सिर उसके पश्चात धड़ और इसके पश्चात हाथ पैर का विकास होता है।
एकीकरण का सिद्धान्त(principle of integration)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक पहले संपूर्ण शरीर को चलाना सीखता है।उसके बाद फिर वह शरीर के अंगों को चलाना सीखता है।उसके बाद शरीर के भागों में एकीकरण करता है। जैेसे – बालक पहले पूरे हाथ को फिर उंगलियों को और फिर हाथ एवम उंगलियों को एक साथ चलाना सीखता है।
वैयक्तिक विभिन्नताओं का सिद्धांत -(priciple of individual differences)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक के विकास में व्यक्ति के विभिन्नताओं का प्रभाव पड़ता है।इस सिद्धान्त में कहा गया है। कि प्रत्येक बालक और बालिका के विकास का अपना स्वयं का स्वरूप होता है।
जैसे एक ही आयु के दो बालकों और दो बालिकाओं के शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास में विभिन्नता पाई जाती है।
- उपयोगी लिंक –स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त
- गेस्टालड़वादियो का अंतर्दृष्टि सूझ का सिद्धान्त
- uptet study material free pdf notes in hindi
- uptet child development and pedagogy notes in hindi
- uptet evs notes in hindi
समान प्रतिमान का सिद्धांत (Principle of uniform pattern)
इस सिद्धान्त के अनुसार हरलॉक महोदय ने कहा है कि
“प्रत्येक जाति चाहे वह पशु जाती हो या मानव जाति अपने जाति के अनुरूप विकास के प्रतिमान का अनुसरण करती है”
परस्पर संबंध का सिद्धांत(Priciple of interrelation)
परस्पर संबंध के सिद्धांत के अनुसार बालक के शारीरिक, मानसिक ,संवेगात्मक आदि पहलुओं के विकास में परस्पर सम्बन्ध होता है।
सामान्य और विशिष्ट प्रतिक्रियाओं का सिद्धांत (Principle of general and specific response)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास सामान्य प्रतिक्रियाओं की ओर होता है।
वंशानुक्रम और वातावरण की अन्तः क्रिया का सिद्धांत(Principles of interaction of heredity and environment)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक का विकास न केवल वंशानुक्रम के कारण और ना ही केवल पर्यावरण के कारण होता है।बल्कि यह दोनों की अंतः क्रिया के कारण होता है।
विकास के विभिन्न सिद्धांत ,विकास का सिद्धांत किसने दिया था,विकास का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया,बाल विकास के प्रमुख सिद्धांत,किशोरावस्था के विकास के सिद्धांतों,एकीकरण का सिद्धांत किसने दिया, विकास की दिशा का सिद्धांत, विकास के सिद्धान्त कौन कौन है, principles of development
आशा है कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको पसंद आई होगी। इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।