बौद्ध धर्म का इतिहास , दस शील , चार आर्य सत्य :: बौद्ध धर्म विश्व के प्रमुख धर्मो में से एक माना जाता हैं। आज हम इसी धर्म के बारे में जानेगे। Hindivaani इस आर्टिकल के माध्यम से बौद्ध धर्म क्या है ? , बौद्ध धर्म का इतिहास , बौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग, बौद्ध धर्म के सिद्धांत आदि के बारे में जानकारी प्रदान करेगा। तो आइए शुरू करते है।
बौद्ध धर्म का इतिहास , दस शील , चार आर्य सत्य

बौद्ध धर्म क्या है ?
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन भारत के साथ के गणराज्य कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के पुत्र गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रतिपादन किया। ज्ञान की प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध ने लगभग 44 वर्ष तक अपने धर्म का प्रचार किया।सम्राट अशोका ,सम्राट कनिष्क ने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया।और इसके प्रचार के लिए विदेशों में भी अपने धर्म प्रचारक भेजें। गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद यह धर्म भी दो भागों में बट गया। हीनयान और महायान ।बौद्ध धर्म का पवित्र ग्रंथ त्रिपिटक है। जिसमें गौतम बुद्ध के धार्मिक उपदेश संग्रहित हैं।
उपयोगी लिंक – जैन धर्म का इतिहास , पंच महाव्रत
बौद्ध धर्म के उदय के कारण –
बौद्ध धर्म के उदय के निम्नलिखित कारण थे।
वैदिक धर्म की जटिलता –
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में वैदिक धर्म पर्याप्त जटिल हो गया था।इसके अंतर्गत पाखंडवाद और अंधविश्वास का बोलबाला होने से साधारण जनता एक सीधे और सरल धर्म की प्रतीक्षा करने लगे थे।
यज्ञओ और कर्मकांडो की बहुलता –
इस समय धर्मों पर ब्राह्मणों का प्रभुत्व स्थापित हो गया था उनके द्वारा प्रचलित दीर्घकालीन यज्ञों तथा जटिल कर्मकांड से जनता ऊब चुकी थी।अतः वह उनसे उबरने के लिए प्रयासरत थी।
जाती प्रथा की कठोरता –
इस काल में जाति प्रथा अत्यधिक कठोर हो चुकी थी समाज में सूत्रों की स्थिति बड़ी शोचनीय थी। और धर्म के क्षेत्र में उनका कोई स्थान नहीं था आता निम्न जातियों के लोग एक नए धर्म की खोज में लगे थे।
बौद्ध धर्म के सिद्धांत और शिक्षाएं –
बौद्ध धर्म के सिद्धांत और शिक्षाएं निम्नलिखित हैं।
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य –
गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य का उपदेश दिया यह चार आर्य सत्य निम्नलिखित हैं।
- दुख – यह संसार दुखमय है।
- दुख का कारण – तृष्णा या वासना ही दुख का कारण है।
- दुखों का नाश – दुख का नाश किया जा सकता है।
- दुख नास का मार्ग – दुख नाश का एकमात्र उपाय है तृष्णा का नाश करना जो अष्टांगिक मार्ग से संभव है।
बौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग –
सम्यक दृष्टि – जीव को उचित अनुचित का भेद करके किसी कार्य को करना चाहिए।
सम्यक संकल्प – जीव को हिंसा, द्वेष, राग, वासना आदि से मुक्त होने का संकल्प करना चाहिए।
सम्यक वचन – जीव को सदैव सत्य बोलना चाहिए।
सम्यक कर्म – विषय वासना से रहित कर्म करना ही समय कर्म है।
सम्यक जीविका – प्रत्येक जीव को केवल अपने परिश्रम और ईमानदारी से धन उपार्जन करना चाहिए।
सम्यक व्यायाम – प्रत्येक जीव को परिश्रम युक्त जीवन व्यतीत करना चाहिए।
सम्यक स्मृति – जीव को अपने शरीर मन और वचन से संबंधित प्रत्येक चेष्ठा के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
सम्यक समाधि – प्रत्येक जीव को अपने चित्त की एकाग्रता बनाए रखनी चाहिए।
बौद्ध धर्म के दस शील और आचरण –
बौद्ध धर्म के दस शील निम्नलिखित हैं।
- सत्य ।
- अहिंसा ।
- चोरी न करना ।
- धन संग्रह ना करना ।
- ब्रह्मचर्य का पालन ।
- नृत्य और गायन का त्याग ।
- सुगंधित पदार्थों का त्याग ।
- असमय भोजन न करना ।
- कोमल शैय्या का त्याग ।
- कामनी और कंचन का त्याग।
बौद्ध धर्म के अन्य सिद्धान्त – बौद्ध धर्म के अन्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं।
ईश्वर एवं आत्मा के अस्तित्व में अविश्वास – बौद्ध धर्म का था या ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखता था इसके अतिरिक्त गौतम बुद्ध आत्मा के प्रश्न पर मौजूद थे।
पुनर्जन्म में विश्वास होना – बौद्ध धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांतों को मान्यता देता था।
कर्मवाद – बौद्ध धर्म के अनुसार कर्म के बिना मोक्ष को प्राप्त करना असंभव है।मोक्ष प्राप्त करके मनुष्य सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।
निर्वाण प्राप्ति – बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना है। मोक्ष प्राप्त करके मनुष्य सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।
संसार की क्षण भंगुरता – बौद्ध धर्म संसार की सभी भौतिक वस्तुओं को क्षणिक मान्यता है।अर्थात इस धर्म के अनुसार वस्तुओं की सत्ता परिवर्तनशील है।
जाति पात में अविश्वास – बौद्ध धर्म जाति पाति का विरोधी और मानव समानता का समर्थक है।
आशा हैं कि हमारे द्वारा दी गई बौद्ध धर्म का इतिहास , त्रिरत्न , दस शील , चार आर्य सत्य आपको काफी पसंद आई होगी। यदि बौद्ध धर्म का इतिहास , त्रिरत्न , दस शील , चार आर्य सत्य आपको पसन्द आयी हो तो इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।