उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण :: हमने अपने पिछले आर्टिकल में काफी अलंकारों के बारे में जानकारी दी थी। अलंकारों के क्रम के आज हम आपके लिए लेकर आये है -उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण । इस आर्टिकल के अंतर्गत हिंदीवानी आपको विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा। इसके अंतर्गत आपको हम उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा , उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण आदि की जानकारी प्रदान करेगा। तो आइए शुरू करते हैं –

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण
उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है ? परिभाषा , उदाहरण

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है ?

ऐसा अलंकार जहां पर उपमेय में उपमान की सम्भवना या कल्पना के लि गयी हो। वहां पर हमेशा उत्प्रेक्षा अलंकार होता हैं। इस अलंकार में पहचानने वाले शब्द जो है वह निम्न हैं – मनो, मानो, मनु , मनहु, जानो, जनु, जनहु , ज्यो आदि।

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उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण –

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण निम्नलिखित हैं।

■मानो माई धनधन अंतर दामिनि ।
धन दामिनि दामिनि धन अंतर ,
सोभित हरि – ब्रज भामिनि ।।

ऊपर दी गयी पक्तियों में हम देखते हैं कि रास रचाते हुए गोपियों के यह प्रतीत होता हैं कि उन लोगो के साथ कृष्ण भी नृत्य कर रहे है। गोरी गोपिया और श्याम रूपी कृष्ण ऐसे प्रतीत होते है। जैसे कि मानो बादल और बिजली , बिजली और बादल साथ साथ शोभयमान हो रहे हो।इन पक्तियों में हम यह देख रहे है। कि गोपियों में बिजली की और कृष्ण में बाफल कई साम्भवना बन रही हैं। इस वजह से इन पक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार हैं।

चमचमात चंचल नयन।
विच घूँघट पट छीन।
मानहु सुरसरिता विमल,
जल उछरत जुग मीन।।

ऊपर दी गयी पंक्तियों में हम देखते हैं कि झीने घूँघट में सुरसरिता के निर्मल जल की ओर चंचल नयनो में दो उछलती हुई मछलियों की अपूर्व संभावना की गई हैं। इस वजह से इन पक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार हैं।

उत्प्रेक्षा अलंकार के परीक्षापयोगी प्रश्नोत्तर –

उत्प्रेक्षा अलंकार के परीक्षापयोगी प्रश्नोत्तर निम्नलिखित हैं।

◆उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुवा सागर जगा।।

◆ सेहत ओढ़े पीत पट,
श्याम सलोने गात।
मनहु निलमनि सैल पर,
आतप परयो प्रभात ।।

◆ उसकाल मारे क्रोध के
तनु काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से
सोता हुवा सागर जगा।।

◆ कहती हुई यो उत्तरा के ,
नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो,
हो गए पंकज नए।।

◆ मुख बाल रवि सम लाल होकर ,
ज्वाल -सा बोधित हुआ।

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