अनुप्रास अलंकार किसे कहते है, परिभाषा, उदाहरण, भेद:: आज हम आपके लिए हिंदी विषय से सम्बंधित जानकारी ले कर आये है। जिसके अंतर्गत hindivaani आपको आज अनुप्रास अलंकार किसे कहते है, परिभाषा, उदाहरण , भेद। आदि चीज की जानकारी प्रदान की जाएगी। इसके अंतर्गत आपको अनुप्रास अलंकार से सम्बंधित सभी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर आपको मिल जायेंगे। तो चलिए शुरू करते है।
अनुप्रास अलंकार किसे कहते है, परिभाषा, उदाहरण, भेद

अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं ?
जिस अलंकार में किसी शब्द की आवृत्ति बार-बार होती है और जिस रचना में व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार पैदा हो। उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण
●”छोरटी हैं गोरटी या चोरटी अहीर की “
हम इस उदाहरण में देखते हैं कि ट वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है।और हम यह जानते हैं कि किसी वर्ण की आवृत्ति जब बार-बार होती है।तो वहां पर अनुप्रास अलंकार होता है।
●”कुल कानन कुंडल मोर पखा ,
उर पे बनमाल विराजति हैं।”
उदाहरण में हमें यह पता चल रहा है। कि पंक्तियों में “क” वर्ण की आवृति तीन बार और “ब” वर्ण की आवृत्ति दो बार हुई है इस कारण से इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
●सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुम पर खिलते हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों में में हम यह देखते हैं कि सुरभित ,सुंदर, सुखद ,सुमन शब्दों में “स” वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है। इस वजह से इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
●चरर मरर खुल गए अरर ख स्फुटो से।
ऊपर दिए गए उदाहरण में हम यह देख रहे हैं कि “र” वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रहे हैं।इस वजह से इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
●भगवती भारती भावु सर्वथा।
उपयुक्त उदाहरण में हमें यह पता चल रहा है कि शब्दों के अंत में “त” वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है इस कारण से इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
●विभवशालिनी, विश्वपालिनी, दुखःहत्री हैं, भय – निवारिणी शान्तिकारिणी सुखकर्ती हैं।
इनका काव्य पंक्तियों में हम या देखते हैं कि विभवशालिनी और विश्वपालिनी में अंतिम वर्ण “न” की आवृत्ति और भय निवारणी और शांतिकारिणी में “ण” की आवृत्ति हुई है। इस कारण से इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
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अनुप्रास अलंकार के उदाहरण
●जो खग हौ तो बसेरो करौ मिलि,
कालिंदी कूल कदम्ब की डारन।।
●कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि।।
●संसार की स्मरस्थली में धीरता धारण करो।
●विमल वाणी ने वाणी ली कमल कोमल कर में सप्रीत।।
●तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
●बन्दउँ गुरु पद पदुम परागा सूरज सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।।
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अनुप्रास अलंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार के भेद निम्नलिखित हैं।
- छेकानुप्रास
- वृत्यानुप्रास
- लाटानुप्रास
- श्रुत्यानुप्रास
- अन्त्यानुप्रास
छेकानुप्रास
छेक का अर्थ होता हैं – वाक – चातुर्य। अर्थात वाक से परिपूर्ण वर्णो की आवृति एक से अधिक बार हो। वहां छेकानुप्रास होता हैं।
छेकानुप्रास का उदाहरण –
इस करुणा कलित हृदय में क्यों विकल रागिनी बजती है।
उपर्युक्त पंक्तियों में हम देखते हैं कि क वर्ण की आवृत्ति क्रम से एक बार है। इसीलिए यह अलंकार हैं।
वृत्यानुप्रास –
जहाँ एक या अनेक व्यंजनों की बार बार पुनरावृत्ति हो । वृत्यनुप्रास होता हैं।
वृत्यनुप्रास अलंकार के उदाहरण –
●कलावती केलिवती कलिंदजा।
●चरन चोट चटकत चकोट।
अरि उपसिर वज्जत।
विकट कटक बिछरत वीर,
वारिज जिम गज्जत।।
श्रुत्यानुप्रास –
मुख के उच्चारण स्थान से सम्बंधित विशिष्ट वर्णो के समय को श्रुत्यानुप्रास कहते है।
●पाप प्रहार प्रकट कई सोई।
भरि क्रोध जल जाइ न कोई।।
●तेहि निसि में सीता पहँ जाई।
त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई।।
अन्त्यानुप्रास –
जहां पद के अंत के एक वर्ण और एक ही स्वर की साम्यमुलक आवृत्ति हो। उसे अंत्यानुप्रास कहते है।
उदाहरण -गुरु पद मृदु मंजुल अंजन।
नयन अमिय दृग दोष बिभंजन ।।
लाटानुप्रास–
लाट का अर्थ है समूह,अर्थात भेद से शब्द तथा अर्थ की आवृत्ति को लाटानुप्रास कहते है।
उदाहरण -पूत सपूत को धन का संचय।
पूत कपूत को धन का संचय।।
अनुप्रास अलंकार के परीक्षा उपयोगी प्रश्नोत्तर
राम रमापति कर धेनु लेहू ।।-अनुप्रास
मुख मयंक सम मंजु मनोहर।।-अनुप्रास
कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुण अयन।।-अनुप्रास
मार सुमार करी डरी , मरी मारिही न मारी।
सींचि गुलाब धरी-धरी, अरि बरिहि न बारि।।-अनुप्रास
पंकज तो पंकज , मृगांक भी मृगांक री प्यारी।
मिली न तेरे मुख की उपमा,देखी वसुधा सारी।- लाटानुप्रास
आशा हैं कि हमारे द्वारा दी गयी अनुप्रास अलंकार किसे कहते है। कि जानकारी आपको पसंद आई होगी। इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।
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